बहुत कम लोग जानते हैं कि बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा की एक कंपनी भी है।

नाम है सेंटर फॉर हॉलिस्टिक एडवांसमेंट ऑफ पुअर एंड लैंडलेस।

नाम सुनकर किसी NGO का आभास होता है, पर है यह एक कंपनी।
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कंपनी में संबित के साथ साझेदार हैं आरएसएस के आनुषंगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के भोलानाथ विज़।


दूसरे साझेदार हैं पीसी ज्वेलर्स के एमडी बलराम गर्ग।



पात्रा की कंपनी अनजान स्रोतों से पैसा लेकर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को ब्याज़ पर उपलब्ध करवाती है।

हालांकि संबित की कंपनी नियमानुसार NBFC या सेक्शन 8 में रजिस्टर्ड नहीं है।
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संबित की कंपनी पहले दिल्ली के RK PURAM इलाके में सेंटर फॉर भारतीय मार्केटिंग डेवलपमेंट के दफ्तर से संचालित होती थी। यह आरएसएस द्वारा संचालित संस्थान है।



पिछले साल कंपनी DDU मार्ग पर एक विशाल परिसर में शिफ्ट हो गई। मोदी सरकार ने यह ज़मीन स्वदेशी जागरण मंच को दी थी।

अब इस कहानी को थोड़ा पीछे ले जाते हैं।

2016 में मोदी की पिछली बीजेपी सरकार ने देश में नोटबन्दी की। 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट प्रचलन से बंद हो गए।

अगर आप संबित पात्रा की कंपनी की 2016-17 की रिटर्न फाइलिंग देखें तो पता चलेगा कि तब कंपनी ने 500 और 1000 रुपये के 61.52 लाख पुराने नोट जमा किये थे।
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सवाल यह है कि ये पैसा आया कहाँ से? क्या उस आरएसएस के जरिये, जिसके साथ संबित अपना आफिस साझा करते हैं? या फिर ये  पैसा बीजेपी से आया?

संबित पात्रा ने ओडिशा के पूरी से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी में  शेयर होल्डिंग की कोई जानकारी नहीं दी? क्यों?

क्या प्रवर्तन निदेशालय संबित से 61.52 लाख रुपये के स्रोत के बारे में पूछेगा?

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