हताशा के इस दौर में एक बार रेने कुजूर को सुनिए, उनके बारे में पढ़िए..
छोटी जगह के लोगों को इतना मौका नहीं मिलता लेकिन तुमलोग दिल्ली जैसी जगह में रहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हो जहां इतना कुछ करने को है और कह रहे हो- हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं ? तब तो कहती थी कि मुझे बड़ा काम करना है, बहुत आगे जाना है, हार मान गयी ? लोग क्या कहेंगे हमें ?
मेरी मां ने जब मुझसे ये सब कहा तो मैंने कहा- हां, हार मान गयी मैं. आय एक्सेप्टेड. क्या करूंगी दिल्ली जाकर, नौकरी-वौकरी है नहीं तो.. लेकिन मैं फिर मां को धमकी देकर दिल्ली वापस आ गयी, ये कहते हुए कि आज के बाद नहीं आऊंगी.

दिल्ली में मेरी नौकरी छूट गयी थी, वही जो इन्टरनल पॉलिटिक्स होती है, उसकी वज़ह से और बॉस ने मुझसे कहा कि तुम रिजाईन दे दो. मैंने कहा- ले लो. लेकिन रिजाईन देने के बाद मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, क्या करूं ? मेरी आंखों में आंसू थे और तभी मैंने सोचा कि गांव चलते हैं, अपने घर चलते हैं. शुरू में तो मम्मी को लगा कि मैं छुट्टी पर आयी हूं लेकिन जब मैं रहने लग गयी और पता चला कि मैं अब कहीं नहीं जा रही तो कहने लगी- लोग क्या कहेंगे ?
मैंने दिल्ली में बारिस्ता, सववे, यूटोपिया..इन सबमें बेट्रेस का काम किया. मैंने काम करके पैसे बचाए और सोचा कि फोलियो बनाएंगे. मुझे मॉडलिंग करनी थी. यही मेरा सपना रहा. मेरी दिल की आवाज़ यही थी.लेकिन मेरी लाइफ में टर्निग प्वाइंट आया. मेरे डैड को कैंसर हो गया. मेजर ऑपरेशन हुआ. हार्ट ब्लॉकेज भी था. सब चला गया, सारे पैसे फिर ख़त्म हो गए. 2012 में मॉम-डैड वापस अपने गांव छत्तीसगढ़ चले गए. सपना फिर से वहीं का वहीं रह गया.
एक टाइम ऐसा था कि हमारे पास पहनने को कपड़े भी नहीं होते थे और हम वो कपड़े पहनते थे जो लोग चर्च में डोनेट कर देते थे. हम वो खाना खाते थे जो मंदिरों में लाइन लगके...ताकि हमारे घर का एक मील का राशन बच जाय. इस तरह से मेरी परवरिश हुई है. मेरी मां तो घर का काम करती थी जिसे लोग बाई कहते हैं और रेस्पेक्ट भी नहीं देते. ऐसी फैमिली से आती हूं मैं...
मेरे स्कूल में एक बार फैंसी ड्रेस कॉम्पटिशन हुआ. मेरी मॉम ने मुझे सिंपल सी प्लेन साड़ी पहनाकर, थर्मकॉल के विंग्स लगाकर स्कूल भेज दिया. मेरे साथ के बाकी लोगों की परी की ड्रेस बहुत सुंदर-सुंदर थी. मैं स्टेज पर चली तो गयी लेकिन क्या बोलती ? स्टेज पर चढ़ते ही लोग कहने लगे- ये तो काली परी है.
हम रेसिज्म की बात करते हैं लेकिन रेसिज्म आता कहां से है ? हमारे घरों से ही तो आता है. मेरा भाई मुझे कहता था इतने छोटे कपड़े पहनकर बाहर निकलेगी, चार लोग रास्ते में क्या कहेंगे ? मैं कहती, वो चार लोग कौन हैं ? मेरा सोचने का तरीका बिल्कुल अलग है. मुझे तब लगता कि मेरी परवरिश करनेवाले मेरे मॉम-डैड हैं, लोग बोलनेवाले कौन होते हैं ?
…मैं दोबारा दिल्ली आयी और एक मल्टीनेशनल कंपनी में मुझे सेल्स गर्ल की नौकरी मिल गयी. छह महीने तो ऐसे ही निकल गए लेकिन दिमाग में मॉडलिंग थी. मुझे सबसे पहले हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए शूट किया गया. ख़ुश थी. दिल्ली में मॉडलिंग देखो तो जो फेयर मॉडल हैं उन्हें अगर बीस काम मिलेंगे तो स्किन के कारण मुझे बस  पांच बार. स्किन को लेकर फ़र्क तो है लेकिन मैं खुश थी कि चलो कम से कम जो मेरा सपना था, उसे दो मैं जी पा रही हूं. मुझे एक ही शूट मिलता तो भी मैं अपनी जान लगा देती. लोग मेरे बारे में कहने लगे कि ये रिहाना जैसी दिखती है..
लोग मेरे बारे में 2008 से कहते आ रहे थे कि ये बिल्कुल रेहाना जैसी लगती है और आज है 2018. दस साल से मैं ये कॉम्प्लिमेंट सुनती आ रही थी, बस सुनती ही आ रही थी. मुझे ऐसा सुनना अच्छा तो लगता. बहुत अच्छा कॉम्प्लिमेंट है, रिहाना से लोग मुझे कॉम्पेयर कर रहे हैं, यहां तो लोग बॉलीबुड के लोगों से, मुझे तो हॉलीबुड की पॉप स्टार से कर रहे हैं. बहुत खुश होती थी लेकिन वो बस एक कॉम्प्लिमेंट ही थी.
मैं भी जानती थी कि मैं रिहाना की तरह दिखती हूं लेकिन उस बात पर मैं कभी यकीं नहीं करती..तो एक दिन ऐसे ही मैं इन्साग्राम पर चेक कर रही थी और अपनी तस्वीरें स्कॉल कर रही थी और अचानक रिहाना की तस्वीर सामने आयी. मैं सोचने लगी कि मैंने ये शूट कब किया था ? तब मैंने उस कॉम्प्लिमेंट पर विश्वास किया. फिर मैंने अपना इन्स्टा हैंडल चेंज किया.
मुझे जो फेम मिला उसके बाद मैंने एक कोलाज बनाया जिसमें एक तरफ रिहाना की तस्वीर थी और दूसरी तरफ मेरी. तब मैंने महसूस किया कि ये जो लोग बोलते हैं, शाहरूख ख़ान का एक डायलॉग है न-
तुम जब किसी चीज को पूरे दिल से चाहो तो पूरी क़ायनात उसे मिलाने में लग जाती है, ये कितना सच है और हुआ भी ऐसा ही. मैं एचटी सीटीवालों के साथ तीन साल से काम कर रही थी, वो मुझे तब भी नोटिस कर सकते थे लेकिन जब मैंने ख़ुद इस कॉम्प्लिमेंट में विलीव किया तब हुआ...और ये इतनी ख़ूबसूरती से आप सबके बीच आ पाया. अब आप मुझे गूगल करो, चालीस से ज़्यादा वेबसाइट पर मेरे बारे में जानकारी मिलेगी. मैंने अठाईस साल की उम्र में मॉडलिंग शुरू की. मेरे दोस्त कहा करते- इस उम्र में कौन मॉडलिंग शुरू करता है...लेकिन मैंने किया.
मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि एक जिंदगी में मैंने दो-दो बार जन्म लिया. मेरा नाम रेणु है लेकिन जब मैंने मॉडलिंग शुरू की तो मैं रेने हो गयी.
नोटः रेने कुजूर दुनिया की बेहतरीन मॉडल में से एक भारतीय मॉडल है. वो एमटीवी सुपर मॉडल ऑफ इंडिया का ख़िताब हासिल कर चुकी हैं. रेने ने अपनी ज़िंदगी को जो आकार दिया है वो हिन्दुस्तान के उन हजारों-लाखों लोगों के लिए जिंदगी और संघर्ष में यकीं पैदा करने और बनाने रखने के लिए ऑक्सीजन का काम करेगा. पिछली रात तरूण सिसोदिया की मौत की ख़बर के बाद में रेने की बातचीत यूयूट्ब पर सुनने लगा और यही सोचता रहा कि जहां जीने की उम्मीद तक न बची हो, उस परिस्थिति में रेने आज दुनिया के सामने अपने सपनों के साथ है. मैंने उस बातचीत का बड़ा हिस्सा आपकी सुविधा के लिए लिखित पाठ के तौर पर तैयार किया है. आप चाहें तो ये बातचीत यहां सुन सकते हैं- 





Courtesy - Vineet Kumar

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